जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
|
0 5 पाठक हैं |
आधुनिक भारत के निर्माता
अध्याय 12 सूरत कांग्रेस में छूट
27 दिसम्बर, 1907 को सूरत में कांग्रेस को किसने तोड़ा? इस इतिहासिक अधिवेशन में भाग लेनेवाले प्रतिनिधि जब तक जीवित रहे तब तक इस प्रश्न पर बराबर गर्मागर्म विवाद चलता रहा। भारतीय राजनीति के विद्यार्थियों को यह प्रश्न आज भी भ्रम में डाल देता है, क्योंकि सूरत अधिवेशन में ही कांग्रेस टूटकर दो टुकड़ों में बंट गई, जबकि उदारवादी उग्रवादियों से अलग हो गए।
इस मतभेद के सम्बन्ध में उपलब्ध दोनों पक्षों के नेताओं द्वारा दिए गए लम्बे-लम्बे वक्तव्यों तथा कुछ विदेशी पर्यवेक्षकों द्वारा प्रस्तुत आंखों-देखे वर्णनों को पढ़कर हम निष्पक्ष रूप से सूरत कांग्रेस में पड़ी फूट और इसमें तिलक द्वारा अदा किए गए हिस्से पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि वही सूरत कांग्रेस के नायक या खलनायक, जो समझें, थे। उन्होंने ही रास बिहारी घोष के अध्यक्ष निर्वाचित होने का कड़ा विरोध किया था, जिससे सभा में हल्ला-हंगामे के बीच खलबली मच गई थी और अन्त में कांग्रेस टूटकर दो दलों में बंट गई थी।
जैसाकि पूर्ववर्त्ती अध्याय में हम पढ़ चुके हैं, सूरत का संघर्ष वास्तव में कलकत्ता में ही आरम्भ हो गया था। उस समय, जैसाकि 'लन्दन टाइम्स' ने व्यंग्य किया था, नरम दलवालों ने गरम दलवालों की कई बातें मान ली थीं और इस तरह संकट टल गया था। इस बात के प्रमाण मौजूद थे कि नरम दलवालों ने गरम दलवालों को हराने और नीचा दिखाने के लिए कलकत्ता में ही लम्बी योजना पहले से बना ली थी। उन्होंने लाला लाजपत राय के लाहौर में कांग्रेस का अगला अधिवेशन बुलाने के आमन्त्रण को अस्वीकार करके नागपुर को जान बूझकर इसलिए चुना कि वहां फिरोजशाह मेहता का अधिक प्रभाव था। कहा जाता है कि उन्होंने रास बिहारी घोष को अध्यक्ष बनाने का भी निश्चय वहीं कर लिया था। इससे भी अधिक गम्भीर बात यह थी कि उन्होंने यह तय किया था कि स्वदेशी, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा के सम्बन्ध में कलकत्ता अधिवेशन में जो प्रस्ताव पास किए गए हैं, उनको वे अगर रद्दी की टोकरी में नहीं फेंक सके, तो निरर्थक जरूर बना देंगे।
29 मार्च, 1907 को सूरत में हुए बम्बई प्रान्तीय सम्मेलन में अवसर मिलते ही नरम दलवालों ने अपने इस निश्चय को कार्यान्वित किया। जहां सम्मेलन के अध्यक्ष डा० भालचन्द्र भाटवडेकर ने नरम विचारों का बखान किया, वहीं फिरोजशाह मेहता ने सभा पर दबाव डालकर बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा के प्रस्तावों को रह करवा दिया। स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग के प्रस्ताव के विषय में अध्यक्ष ने कहा कि अच्छा होता कि इस पर यहां कांग्रेस की बजाय किसी औद्योगिक सम्मेलन में विचार होता। नरम दलवालों ने यही नीति रायपुर में हुए मध्य प्रान्त और बरार प्रान्तीय सम्मेलन में भी अपनाई। इसके अध्यक्ष ने सभा में 'वन्दे मातरम्' के गायन तक को भी इस आधार पर मनाही कर दी कि बंगाल में सरकार ने उस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इलाहाबाद में हुए संयुक्त प्रान्त प्रादेशिक सम्मेलन में 200 प्रतिनिधियोंको केवल इसलिए भाग नहीं लेने दिया गया कि वे वहिष्कार के समर्थक थें।
नरम दलवालों द्वारा सारे देश में यही नीति अपनाना बिना किसी सुनिश्चित योजना के सम्भव न था। गरम दलवालों के लिए इसके बाद उनका विरोध करने के अलावा और कोई चारा न रहा। उन्होंने नागपुर में स्वागत समिति में बहुमत पाने की पूरी कोशिश की। यही समिति अध्यक्ष का चुनाव करती थी। जहां नरम दल वाले केवल 800 सदस्य ही बना सके, वहां गरम दलवालों को 1,800 मत प्राप्त हो गए। किन्तु यह भी अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए आवश्यक तीन-चौथाई के बहुमत से थोड़ा कम था। नरम दलवालों ने जब देखा कि उनकी दाल नहीं गल सकती, तो गरम दलवालों द्वारा विरोध किए जाने पर भी उन्होंने आग्रह किया कि स्वागत समिति को नागपुर में अधिवेशन करने का कोई अधिकार नहीं। फिरोजशाह मेहता की जब राय पूछी गई, तो उन्होंने तुरन्त सूरत से प्राप्त निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। सूरत में ही कुछ दिन पूर्व प्रान्तीय सम्मेलन में उन्होंने विजय पाई थी।
|
- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट